जब कोई सितारा टूट कर गिरता है तो लोग कहते हैं कि हमे उससे विश माँगनी चाहिए ..कोई पवित्र आत्मा कम उम्र में देह छोड़ गई होगी..
कम उम्र में देह छोड़ जाने वालो की वहाँ ऊपर भी एक अलग दुनिया होती होगी जहाँ वो अपनी अधूरी यात्रा के किस्से एक दूसरे से साझा करते होंगे ..मैं सोचती हूँ कि जब बटालवी साहब इस दुनिया से जा रहे होंगे तो जिसने भी उस चमकीली रोशनी से दुआ माँगी होगी वो ज़रूर पूरी हुई होगी ..क्यूंकि बटालवी को अच्छी तरह से मालूम था कि अधूरी ख्वाहिशों का क्या हश्र होता है ..
शिव कुमार बटालवी 23 जुलाई 1936 को पंजाब के सियालकोट में जन्मे एक ऐसे इंसान थे जो पैदा ही प्रेम करने और प्रेम को लिखने के लिए हुए थे..
बचपन से पेड़ों, नदियों और संगीत से प्रेम करने वाले शिव कितने मासूम और प्यारे थे ये हम इनकी एक पुरानी वीडियो में देख सकते हैं.. जो कि एकमात्र इंटरव्यू है जो बीबीसी ने लिया था।
(इनकी मासूमियत से मुझे भी इश्क़ है)
शिव एक ऐसे प्रेमी थे जिन्हे उनका प्रेम कभी नहीं मिला..
वो अपने लिखे गीतों में इश्तहार देते रहे, ढूंढ़ते रहे, शिक़ायतें करते रहे और ऐसा करते हुए वो हमें ऐसे ऐसे गीत दे गए जो अमर हैं..
गांव के मेले में एक लड़की को देख कर उसे अपना दिल दे बैठे..
ना उसका नाम जानते थे ना ही उसका पता..
उसे आस पास के गांवों में ढूंढ़ते रहे
और लिखा..

“इक्क कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत
गुम है,
सूरत ओस दी, परियां वर्गी
सीरत दी ओ मरियम लगदी
हस्ती है तां फूल झडदे ने
तुरदी है तन ग़ज़ल है लगदी..
“एक लड़की जिसका नाम मोहब्बत है..
वो गुम है..
और उसकी पहचान लिखते हैं
कि..
सूरत उसकी परियों जैसी है..
सीरत से मरियम लगती है
जब वो हंसती है तो फूल
झड़ने लगते हैं..
और जब वो चलती है तो
किसी ग़ज़ल सी खूबसूरत लगती है।”
इतना सुंदर दिल था शिव का।
ख़ैर.. जब वो उस लड़की को ढूढ़ते ढूंढ़ते उसके घर तक गए तब उन्हें पता चला कि किसी बीमारी की वजह से उस लड़की का इंतकाल हो चुका है..
वो टूट गए.. और बहुत दुखी हुए..
और उन्होने लिखा
” असां तां जोबन रुत्ते मरनां
जोबन रूत्ते जो भी मरदा फूल बने या तारा
जोबन रुत्ते आशिक़ मरदे या कोई करमा वाला”
“मुझे तो जवानी में ही मरना है,
क्यूंकि जवानी में जो मरता है वो या तो फूल बनता है
या कोई तारा..
जवानी में केवल प्रेम करने वाले ही मरते हैं
या फिर बड़े कर्मों वाले। “
इसके बाद उन्हें प्रेम हुआ एक ऐसी लड़की से जिसके बारे में आधिकारिक रूप से कोई नहीं जान पाया, कोई नहीं जान पाया कि वो लड़की कौन थी..
कहते हैं कि वो लड़की भी शादी करके विदेश चली गई..
एक बार फिर से शिव का दिल टूट गया..
उन्हें बस यही ख़याल आता रहता कि जो लड़की मुझसे इतनी प्यारी बातें किया करती थी वो ऐसे शादी करके विदेश कैसे जा सकती है..
वो लिखते हैं..
“माए नी माए मैं इक शिकरा यार बनाया
चूरी कुट्टाँ ताँ ओह खाओंदा नाहीं वे असाँ दिल दा मास खवाया इक उड़ारी ऐसी मारी इक उड़ारी ऐसी मारी ओह मुड़ वतनीं ना आया, ओ माये नी!
मैं इक शिकरा यार बना..

शिव ने खूब लिखा..
प्रेम में सौंदर्य लिखा,प्रेम में विरह लिखा..
और इतना कुछ लिख कर मात्र 35 वर्ष की उम्र में अपना सारा लिखा हमें देकर इस दुनिया को विदा कह गए।
दुनिया शिवकुमार बटालवी को “विरह-दा-सरताज” कहती है ..
जिसने जब प्रेम गाया तब कमसिन उम्र प्रेम करना सीख गई ..
और जब विरह गाया तो ऐसे गाया कि उन नाज़ुक दिलों की धड़कने भी रो पड़ीं..
शिवकुमार बटालवी जब अपनी काँपती आवाज़ में विरह गीत गाते थे तो ऐसा लगता था जैसे अपना सीना चीर दिया हो ..और दुखों को आज़ाद कर दिया हो ..
उनकी आवाज़ और सुनी जानी चाहिए थी लेकिन शिव कुमार बटालवी एक गीतकार हुए जिनकी आवाज़ को चुरा लिया गया ..
“मैं इश्क़ दी आखरी नज़्म हाँ,
जिसनूं मुकम्मल पढ़या नहीं गया…”
जिसकी आत्मा विरह के जलते हुए अक्षरों में लिखी गई थी। जिसके गीतों में लावा की सी तपन थी और जिसकी कविताओं में जन्मों की पीड़ा उसकी आवाज़ कहीं खो गई।
सोचती हूँ कि क्या यह समय की कोई निर्मम साज़िश थी, या साहित्यिक स्मृति की एक संगठित हत्या?
बटालवी की कविताओं में मृत्यु कोई आखिरी क्षण नहीं थी, वह उनके हर गीत की पंक्ति में गूंजती थी। उनका प्रेम, मृत्यु के बिना अधूरा था। वे एक ऐसे कवि थे, जो विरह को जीते-जी कविता में जीते रहे। परन्तु आज, उनका लिखा, उनका बोला, और उनकी उपस्थिति—सब किसी धुंध में समा गई।
आकाशवाणी जालंधर की रिकॉर्डिंग्स, जो उनकी कविताओं को जनमानस तक लाती थीं, अब अनुपलब्ध हैं। दावा है कि उनकी डायरी, जिसमें उन्होंने जीवन और मृत्यु के बीच के अनुभवों को दर्ज किया था, वह या तो चोरी हो गई या जला दी गई। उनके गीतों की रिकॉर्डिंग्स, जो उनके जीवनकाल में बनी थीं, आज शायद ही कहीं उपलब्ध हैं।
उनकी रचनाओं को जानबूझ कर मिटाया गया, और कुछ वामपंथी विचारधाराओं के समर्थकों ने उन्हें ‘प्रतिक्रियावादी’ कहकर खारिज कर दिया।
लेकिन क्या केवल वैचारिक असहमति किसी कवि की आवाज़ को इस तरह चुप कर सकती है?
शिव का लिखा हुआ सिर्फ़ एक कवि की बात नहीं करता, वह प्रेम, पीड़ा, आत्मा, और मृत्यु का शुद्ध संवाद था। उन्होंने पंजाबी भाषा को वह तड़प दी जो किसी सूफियाना संगीत की तरह शाश्वत हो गई। लेकिन अफ़सोस, उन्हें न तो वह संस्थागत संरक्षण मिला जो अमृता प्रीतम को मिला, और न ही वह पुनरावृत्ति जो फ़ैज़ को नसीब हुई।
खैर! शिवकुमार बटालवी हमारे दिलों में मासूम इश्क़ को ज़िंदा रखे हुए हैं ..उनके गीत आज भी मोहब्बत में गाये जाते हैं ..
मुझे बस अफ़सोस है तो सिर्फ़ उनकी उस डायरी का जिसे नष्ट कर दिया गया ..
और इसके एवज में मैं वो बीबीसी का इंटरव्यू देख लेती हूँ जो उनकी मृत्यु से तीन साल पहले लिया गया था ..जिसमे एंकर शिव से कुछ सुनाने को कहते हैं और शिव बच्चे की सी मासूमियत से कहते हैं
“तो मैं क़ताब ले लूँ?”
~शुभगौरी