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कुछ प्रेमियों का प्रेम स्पर्श में होता है कुछ का मौन में और कुछ ऐसे होते हैं जिनका प्रेम शब्दों में आकार लेता है शुभ गौरी उन्हीं में से हैं वे प्रेम को साधारण नहीं मानतीं बल्कि उसे एक दैवीय ऊर्जा की तरह देखती हैं जो न तो किसी दायरे में सीमित है न ही किसी बंधन में कैद

दुनियां भर में दो प्रकार के लोग होते हैँ एक वो लोग हैँ जो शब्दों से खेलत हैं और दूसरे वो लोग जो शब्दों में जीते हैं और कुछ ऐसे होते हैं जो शब्दों को इस तरह रचते हैं कि वे सिर्फ़ पढ़े नहीं जाते बल्कि भीतर तक महसूस होते हैं शुभ गौरी उन्हीं में से एक हैं
शुभगौरी की कविताएँ सिर्फ़ कागज़ पर लिखे शब्द नहीं बल्कि आत्मा पर उकेरी गई अनुभूतियाँ हैं वे प्रेम को परिभाषित नहीं करतीं बल्कि उसे जीने के नए आयाम देती हैं उनके लिए प्रेम किसी रिश्ते में बंधकर सीमित होने के लिए नहीं बल्कि किसी नदी की तरह बहने के लिए है निर्बाध स्वतंत्र और शाश्वत वे लिखती हैं कि प्रेम कोई सम्पत्ति नहीं जिसे पाया या खोया जा सके बल्कि वह एक अस्तित्व है जो हर क्षण हमारे भीतर सांस लेता है
प्रकृति उनके शब्दों में साँस लेती है और प्रेम उनकी रचनाओं में महकता है
वे फूलों से प्रेम करती हैं क्योंकि फूलों की तरह उनका लेखन भी सौम्यता से भरा है कोमल स्नेहिल और सुवासित लेकिन फूलों की उम्र सीमित होती है और प्रेम की नहीं वे प्रेम को एक क्षणिक भावना के बजाय एक अनंत यात्रा मानती हैं उनके शब्द बताते हैं कि प्रेम केवल उन लम्हों में नहीं रहता जब दो लोग साथ होते हैं बल्कि वह तब भी जीवित रहता है जब सब कुछ मौन हो जाता है

लोबान सा महकता प्रेम सिर्फ़ एक किताब नहीं बल्कि प्रेम के उन अनछुए पहलुओं का संग्रह है जिनके बारे में लोग महसूस तो करते हैं लेकिन शब्द नहीं दे पाते यह किताब बताती है कि प्रेम हमेशा पाने या खोने की परिभाषाओं में नहीं बँधता बल्कि वह मौन स्पर्शों अनकही बातों और ठहरी हुई निगाहों में भी उतना ही जीवंत रहता है
उनकी कविताएँ उस मौन की तरह हैं जो शब्दों से भी अधिक मुखर होता है वे प्रेम को सिर्फ़ एक भावुकता नहीं बल्कि आत्मा की गहराई तक महसूस होने वाली अनुभूति मानती हैं उनके लिए प्रेम कोई ऐसी चीज़ नहीं जिसे समझा जाए बल्कि वह तो स्वयं को अनुभव करवा देता है उनके शब्द कभी नदी की तरह बहते हैं तो कभी रेगिस्तान की तरह ठहरे होते हैं जहाँ प्रतीक्षा का धैर्य भी प्रेम का ही एक रूप होता है

उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे प्रेम को शब्दों में बाँधती नहीं बल्कि उसे इतनी नजाकत से छूती हैं कि वह हर किसी के अपने अनुभव में ढल जाता है उनकी कविताएँ किसी गुलाब की तरह नहीं बल्कि किसी जंगली फूल की तरह होती हैं ख़ुद में स्वच्छंद ख़ुद में पूरी उनमें किसी इत्र की बनी-बनाई ख़ुशबू नहीं बल्कि किसी पुराने संदूक में रखी चिट्ठी की तरह एक सजीव महक होती है

शुभ गौरी की लेखनी वो आईना है जिसमें हर प्रेमी अपनी अधूरी कहानी देख सकता है

उनकी कविताएँ किसी शाम के रंग जैसी हैं हल्की गुलाबी थोड़ी सुनहरी थोड़ी उदास और बेहद ख़ूबसूरत वे प्रेम को सिर्फ़ हृदय में नहीं आत्मा में लिखती हैं और शायद इसीलिए उनकी हर रचना किसी अधूरे प्रेम की पूरी कविता लगती है वे प्रेम को छूने की नहीं महसूस करने की बात करती हैं और जब वे लिखती हैं तो ऐसा लगता है मानो कोई चाँदनी रात हमारी हथेलियों में रख दी गई हो मुलायम चमकती हुई और थोड़ी रहस्यमयी उनकी रचनाएँ वैसे ही हैं जैसे कोई पुरानी चिट्ठी जिसे बार बार पढ़ो तो हर बार नया अर्थ मिलता है जैसे पहली बारिश की ख़ुशबू जैसे चाँदनी रात में ठंडी हवा का एक झोंका जैसे किसी अधूरे गीत का सबसे प्यारा सुर !

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She invites you to explore new worlds and discover the magic within the pages. Welcome to her literary journey.

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Worlds Within Words

A novelette book by Subh Gauri

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